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अरावली पहाड़ियों के संरक्षण पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्वतः संज्ञान

Mon 29 Dec, 2025

संदर्भ :

  • सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पहाड़ियों की परिभाषा में हालिया बदलाव (100 मीटर की ऊंचाई वाला मानदंड) से पैदा हुई चिंताओं पर स्वत: संज्ञान (suo motu) लिया है।

मुख्‍य बिन्‍दु :

  • सुनवाई : 29 दिसंबर, 2025 को
  • बेंच में शामिल : मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत, न्यायमूर्ति जे.के. माहेश्वरी और न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह की अवकाशकालीन पीठ
  • क्‍यों : पर्यावरणविदों और जनता ने इस पर भारी आपत्ति जताई है, जिससे बड़े पैमाने पर खनन और पर्यावरणीय क्षति की आशंका है
  • कोर्ट ने इस पर सुनवाई के लिए एक वेकेशन बेंच गठित की है।
  • चिंता का कारण: सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 2025 में अरावली पहाड़ियों और श्रेणियों की परिभाषा को लेकर एक नया, ऊंचाई-आधारित मानदंड (100 मीटर से अधिक ऊंचाई वाली भूमि) स्वीकार किया था, जिससे 90% से अधिक छोटी पहाड़ियां परिभाषा से बाहर हो गईं और खनन के लिए खुल गईं, जिससे पर्यावरण को गंभीर खतरा पैदा हो गया।
  • अरावली का महत्व: अरावली पर्वतमाला उत्तर-पश्चिमी भारत में मरुस्थलीकरण (desertification) रोकने, जल संरक्षण और जैव विविधता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, और यह दिल्ली-एनसीआर के लिए प्राकृतिक सुरक्षा कवच का काम करती है।
  • आगे की कार्रवाई: कोर्ट इस मामले पर सुनवाई करके सभी राज्यों के लिए समान और वैज्ञानिक मानदंड लागू करने तथा खनन पर प्रभावी रोक लगाने के उपायों पर विचार करेगी।

पृष्ठभूमि :

  • मई 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण मंत्रालय (MoEFCC) की अगुवाई में एक कमेटी गठित की, जिसमें राज्य प्रतिनिधि, फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (FSI), जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया और सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी शामिल थे
  • कमेटी ने अक्टूबर 2025 में रिपोर्ट सौंपी।
  • 20 नवंबर 2025 को तत्कालीन CJI बीआर गवई की बेंच ने कमेटी की सिफारिशें स्वीकार कर लीं।

नई परिभाषा:

  • अरावली हिल: कोई भी भू-आकृति जो स्थानीय धरातल (local relief) से 100 मीटर या अधिक ऊंची हो, साथ ही उसकी सहायक ढलानें और जुड़ी हुई भूमि।
  • अरावली रेंज: दो या अधिक ऐसी पहाड़ियां जो एक-दूसरे से 500 मीटर के दायरे में हों।

उत्पन्न चिंताएं :

  • पर्यावरणविदों, विशेषज्ञों और विपक्षी दलों का आरोप: यह परिभाषा अरावली के 90% हिस्से को संरक्षण से बाहर कर देगी, क्योंकि अधिकांश छोटी पहाड़ियां, ढलानें और हिलॉक्स 100 मीटर से कम ऊंचे हैं।

परिणाम:

  • मरुस्थलीकरण बढ़ेगा (थार का प्रसार)।
  • भूजल रिचार्ज प्रभावित होगा, दिल्ली-एनसीआर में पानी की कमी गंभीर।
  • जैव विविधता और वन्यजीव कॉरिडोर नष्ट होंगे।
  • खनन और रियल एस्टेट गतिविधियां बढ़ेंगी।

सुप्रीम कोर्ट के सुरक्षात्मक निर्देश (20 नवंबर 2025 आदेश) :

  • नए खनन पट्टों पर पूर्ण रोक: सस्टेनेबल माइनिंग प्लान (MPSM) तैयार होने तक कोई नया लीज़ नहीं।
  • कोर/इनवायोलेट जोन्स में खनन प्रतिबंधित: संरक्षित क्षेत्र, इको-सेंसिटिव जोन्स, टाइगर रिजर्व, वेटलैंड्स आदि में पूर्ण बैन (कुछ क्रिटिकल मिनरल्स को छोड़कर)।
  • ICFRE को MPSM तैयार करने का निर्देश, जिसमें अतिरिक्त संरक्षित क्षेत्र चिह्नित होंगे।
  • मौजूदा खदानों पर सख्त निगरानी और पर्यावरण अनुपालन अनिवार्य।
  • केंद्र का दावा: नई परिभाषा से 90% से अधिक क्षेत्र संरक्षित रहेगा, और यह मैप-वेरिफायबल है।

केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया :

  • 24 दिसंबर 2025: MoEFCC ने हरियाणा, राजस्थान और गुजरात के मुख्य सचिवों को पत्र लिखकर नए खनन पट्टों पर पूर्ण बैन लागू करने और संरक्षित क्षेत्र बढ़ाने का निर्देश दिया।
  • पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव: "कोई छूट नहीं दी गई, 90% क्षेत्र संरक्षित है। अफवाहें फैलाई जा रही हैं।"

अरावली रेंज :

  • अर्थ: 'अरावली' संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है 'पर्वतों की रेखा'
  • विश्‍व की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है और भारत की एक महत्वपूर्ण भौगोलिक विशेषता है।
  • यह उत्तर-पश्चिमी भारत में फैली हुई है और दुनिया की सबसे पुरानी फोल्ड माउंटेन सिस्टम में गिनी जाती है।
  • इसका निर्माण प्रोटेरोजोइक युग (लगभग 2-3 अरब वर्ष पूर्व) में हुआ था, जिसके कारण यह अपरदन (erosion) से काफी प्रभावित होकर अवशिष्ट (residual) पहाड़ियों में बदल गई है।

भौगोलिक विस्तार (Location & Extent) :

  • क्षेत्र: यह उत्तर-पश्चिमी भारत में स्थित है। यह दक्षिण-पश्चिम दिशा में गुजरात (पालनपुर) से शुरू होकर राजस्थान और हरियाणा से होते हुए दिल्ली तक फैली हुई है।
  • कुल लंबाई: इसकी कुल लंबाई लगभग 692 किलोमीटर है।
  • प्रमुख विस्तार: इसका लगभग 80% विस्तार (करीब 550 किमी) अकेले राजस्थान में है।
  • दिल्ली रिज: दिल्ली में स्थित राष्ट्रपति भवन 'रायसीना की पहाड़ियों' पर बना है, जो अरावली का ही हिस्सा है।
  • सर्वोच्च शिखर: गुरु शिखर (Guru Shikhar), माउंट आबू (सिरोही, राजस्थान) में, ऊंचाई 1,722 मीटर(5,650 फीट)

प्रमुख विशेषताएं :

  • यह श्रृंखला दो मुख्य भागों में विभाजित है: संभार-सिरोही रेंज (दक्षिणी, ऊंची) और संभार-खेतड़ी रेंज (उत्तरी, कम ऊंची)।
  • चट्टानें: मुख्यतः क्वार्टजाइट, ग्रेनाइट, नीस और शिस्ट।
  • नदियां: बनास, लूनी, साखी, साबरमती आदि का उद्गम स्थल। यह राजस्थान को जल विभाजक रेखा प्रदान करती है।
  • वनस्पति: दक्षिणी भाग में घने वन (ट्रॉपिकल ड्राई डिसिड्यूअस), उत्तरी भाग में विरल झाड़ियां

पर्यावरणीय और जलवायु महत्व :

  • थार मरुस्थल का अवरोध: अरावली थार रेगिस्तान के पूर्वी विस्तार को रोकती है, जिससे इंडो-गैंजेटिक मैदानों का मरुस्थलीकरण रुकता है।
  • भूजल रिचार्ज: महत्वपूर्ण एक्विफर रिचार्ज जोन, दिल्ली-एनसीआर और राजस्थान के लिए जल स्रोत।
  • जैव विविधता: तेंदुआ वन्यजीव कॉरिडोर (सरिस्का-दिल्ली), सरिस्का टाइगर रिजर्व, माउंट आबू वन्यजीव अभयारण्य आदि। यहां लेपर्ड, हाइना, विभिन्न पक्षी और वनस्पति प्रजातियां पाई जाती हैं।
  • जलवायु प्रभाव: मानसून हवाओं को प्रभावित करती है और सर्दियों में मध्य एशिया की ठंडी हवाओं को रोकती है

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