15 December, 2025
‘निरसन एवं संशोधन विधेयक, 2025’
Thu 18 Dec, 2025
संदर्भ :
- लोकसभा ने ‘निरसन एवं संशोधन विधेयक, 2025’ (Repealing and Amending Bill, 2025) पारित किया।
मुख्य बिन्दु :
- विधेयक का उद्देश्य : अप्रचलित, अनावश्यक तथा औपनिवेशिक कालीन कानूनी प्रावधानों को समाप्त करना और आवश्यकतानुसार संशोधन करना(भारत की विधि पुस्तिका (statute book) को साफ-सुथरा करना)
- यह अप्रचलित (obsolete), अनावश्यक या प्रभावहीन हो चुके कानूनों को निरस्त (repeal) करता है तथा कुछ मौजूदा कानूनों में छोटे-मोटे संशोधन करता है।
- यह विधेयक कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल द्वारा 15 दिसंबर 2025 को लोकसभा में पेश किया गया था।
- लोकसभा ने इसे 16 दिसंबर 2025 को ध्वनि मत से पारित कर दिया, और राज्यसभा ने 17 दिसंबर 2025 को भी ध्वनि मत से मंजूरी दे दी।
- अब यह राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद कानून बन जाएगा।
प्रमुख प्रावधान और विधायी परिवर्तन :
- विधेयक मुख्य रूप से दो मोर्चों पर काम करता है: निरसन (पुरानों को हटाना) और संशोधन (मौजूदा को सुधारना)।
- अप्रचलित कानूनों का निरसन (Repealing)
विधेयक कुल 71 अधिनियमों को पूरी तरह समाप्त करता है:
- इनमें से 65 संशोधन अधिनियम हैं। चूंकि इनके प्रावधान पहले ही मूल कानूनों में शामिल हो चुके हैं, इसलिए इनका स्वतंत्र अस्तित्व अब अनावश्यक था।
प्रमुख निरस्त कानून:
- भारतीय ट्रामवे अधिनियम, 1886: औपनिवेशिक काल का कानून जिसकी आज कोई प्रासंगिकता नहीं है।
- लेवी शुगर मूल्य समानीकरण निधि अधिनियम, 1976: जो अब आर्थिक रूप से अप्रासंगिक हो चुका है।
- BPCL (सेवा-शर्तों का निर्धारण) अधिनियम, 1988: प्रशासनिक सुगमता के लिए इसे हटाया गया है।
महत्वपूर्ण संशोधन (Amending) :
- विधेयक में 4 प्रमुख अधिनियमों में सुधार किए गए हैं ताकि उन्हें समकालीन बनाया जा सके:
| अधिनियम | प्रमुख सुधार/परिवर्तन |
| सामान्य प्रावधान अधिनियम, 1897 | 'पंजीकृत डाक' (Registered Post) से संबंधित शब्दों को आधुनिक संचार माध्यमों के अनुकूल अद्यतन किया गया। |
| दीवानी प्रक्रिया संहिता (CPC), 1908 | प्रक्रियात्मक शब्दावली में सुधार ताकि कानूनी कार्यवाही तेज हो सके। |
| भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 | कोलकाता, मद्रास और मुंबई में हिंदू, बौद्ध, सिख, जैन और पारसी समुदायों के लिए वसीयत के न्यायालयीय सत्यापन (Probate) की अनिवार्यता को कम किया गया। |
| आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 | एक तकनीकी त्रुटि को सुधारते हुए “रोकथाम” (Prevention) शब्द के स्थान पर “तैयारी” (Preparedness) शब्द को जोड़ा गया। |
प्रभाव और लाभ :
- नागरिक-केंद्रित नीति: वसीयत (Probate) जैसे नियमों में ढील देने से आम जनता को अदालती चक्करों से राहत मिलेगी।
- निवेश को बढ़ावा: कम अनुपालन बोझ के कारण भारत में व्यापार करना (Ease of Doing Business) आसान होगा।
- न्यायिक दक्षता: अनावश्यक कानूनों के हटने से अदालतों में लंबित मामलों के बोझ को कम करने में मदद मिलेगी।
संसद में चर्चा और विपक्ष की प्रतिक्रिया :
- विधेयक गैर-विवादास्पद था और दोनों सदनों में ध्वनि मत से पारित हुआ।
- विपक्ष (जैसे समाजवादी पार्टी के लालजी वर्मा) ने सवाल उठाया कि कुछ कानून (2016-2023 के) हाल के हैं, फिर भी निरस्त क्यों? सरकार ने स्पष्ट किया कि ये ज्यादातर संशोधन अधिनियम हैं, जिनका काम हो चुका।
- कुछ सदस्यों ने अन्य मुद्दों (जैसे एंटी-डिफेक्शन लॉ या UAPA) पर चर्चा की, लेकिन विधेयक पर सहमति बनी रही।
- कानून मंत्री ने इसे "औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति" का कदम बताया।
सकारात्मक प्रभाव:
- कानूनी ढांचा सरल और आधुनिक बनेगा।
- न्यायिक प्रक्रियाएं तेज होंगी (जैसे वसीयत संबंधी भेदभाव हटने से)।
- अनावश्यक कानूनों से मुक्ति देकर प्रशासनिक बोझ कम होगा।
- यह "न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन" की नीति से जुड़ा है।
- कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं: निरस्ती से मौजूदा मुकदमे या अधिकार प्रभावित नहीं होंगे, क्योंकि ये कानून पहले ही अप्रभावी हैं।









