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पुतिन की भारत यात्रा

Sun 07 Dec, 2025

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की 2025 में हुई भारत यात्रा आधुनिक वैश्विक तनावों और बदलते शक्ति समीकरणों के बीच अत्यंत महत्त्वपूर्ण मानी जा रही है। यह यात्रा ऐसे समय में हुई जब विश्व राजनीति में अमेरिका–चीन प्रतिद्वंद्विता, रूस–यूक्रेन युद्ध, पश्चिमी प्रतिबंध, और इंडो-पैसिफिक में बढ़ती सक्रियता जैसे बड़े परिवर्तन दिखाई दे रहे हैं। इस यात्रा ने भारत-रूस संबंधों को नई ऊर्जा दी और रक्षा, ऊर्जा, विज्ञान, व्यापार तथा भू-राजनीति के क्षेत्रों में अनेक महत्त्वपूर्ण परिणाम सामने आए।

भारत–रूस संबंधों का ऐतिहासिक संदर्भ

  • भारत और रूस (पूर्व सोवियत संघ) के संबंधों को "विशेष एवं विशेषाधिकारयुक्त रणनीतिक साझेदारी" कहा जाता है। इसके कुछ ऐतिहासिक आधार हैं:

(A) शीत युद्ध काल

  • 1971 के भारत-पाक युद्ध में सोवियत संघ ने भारत का कूटनीतिक समर्थन किया।
  • सैन्य, तकनीकी तथा अंतरिक्ष सहयोग इसी दौर में गहरा हुआ।

(B) सोवियत संघ विघटन के बाद

  • 1993 में मैत्री संधि,
  • 2000 में रणनीतिक साझेदारी समझौता,
  • और वार्षिक शिखर वार्ताओं की परंपरा शुरू हुई।

(C) रक्षा सहयोग

  • रूस दशकों से भारत का सबसे बड़ा रक्षा आपूर्तिकर्ता रहा है।
  • ब्रह्मोस मिसाइल, S-400 प्रणाली, AK-203 राइफलें, सुखोई-30MKI, टी-90 टैंक, और परमाणु पनडुब्बी लीजिंग जैसे प्रोजेक्ट इसी साझेदारी के उदाहरण हैं।

2025 की यात्रा इसी गहरे ऐतिहासिक आधार को आधुनिक आवश्यकताओं के अनुसार अद्यतन करने का प्रयास है।

 

पुतिन की यात्रा के प्रमुख परिणाम

(A) रक्षा व सुरक्षा संबंध और मजबूत

  • “मेक इन इंडिया” के तहत संयुक्त उत्पादन बढ़ाने पर सहमति।
  • उन्नत गोला-बारूद, मिसाइल प्रणालियों, नौसैनिक प्लेटफॉर्मों के लिए संयुक्त परियोजनाएँ।
  • साईबर सुरक्षा, आतंकवाद-रोधी खुफिया साझेदारी और सागर सुरक्षा पर नए समझौते।

(B) ऊर्जा व परमाणु सहयोग का विस्तार

  • रूस ने रियायती दरों पर दीर्घकालिक कच्चे तेल की आपूर्ति जारी रखने का आश्वासन दिया।
  • कुडनकुलम परमाणु संयंत्र के यूनिट 5 और 6 पर प्रगति।
  • LNG, पेट्रोकेमिकल, आर्कटिक ऊर्जा मार्गों में सहयोग बढ़ाने पर सहमति।

(C) संपर्क एवं व्यापार मार्ग

  • INSTC (International North–South Transport Corridor) पर प्रगति की समीक्षा।
  • चेन्नई–व्लादिवोस्तोक समुद्री कॉरिडोर को तेज गति से संचालित करने पर चर्चा।

(D) व्यापार संबंधों को बढ़ावा

  • लक्ष्य: 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 100 अरब डॉलर तक पहुँचाना।
  • फार्मा, आईटी, कृषि, खनिज, स्पेस और सुदूर पूर्व (Far East) निवेश में सहयोग।

(E) अंतरिक्ष विज्ञान व प्रौद्योगिकी

  • भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों के लिए उन्नत प्रशिक्षण प्रस्ताव।
  • चंद्र मिशनों, क्वांटम तकनीक, एआई और वैज्ञानिक अनुसंधान में सहयोग।

इस यात्रा का भू-राजनीतिक महत्त्व

(A) भारत की "रणनीतिक स्वायत्तता" की पुनर्पुष्टि

पश्चिमी दबावों के बावजूद भारत ने रूस के साथ अपने संबंधों को बरकरार रखा—

तेल खरीद, ब्रिक्स, एससीओ और क्वाड—सभी संतुलित रूप से संचालित।

यह भारत की स्वतंत्र विदेश नीति को दर्शाता है।

(B) रूस का एशिया की ओर झुकाव

पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण रूस एशिया में भरोसेमंद साझेदार ढूँढ रहा है—जिसमें भारत प्रमुख है।

(C) भारत–रूस–चीन त्रिकोण पर प्रभाव

रूस चीन का निकट सहयोगी है, पर भारत की चिंताओं के प्रति संवेदनशील रहता है।

भारत इस संतुलन का उपयोग अपने रणनीतिक हितों के लिए करता है।

(D) बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था

दोनों देशों ने वैश्विक राजनीति में बहुध्रुवीयता (Multipolarity) को समर्थन दिया।

ब्रिक्स+, एससीओ और जी-20 सुधारों पर सहमति जताई।

4. भारत–रूस व्यापार : प्रमुख तथ्य

2024–25 के अनुमानित आँकड़े
  • कुल व्यापार: 65–70 अरब डॉलर, अधिकांश रूसी तेल के कारण।
  • भारत के आयात: तेल, कोयला, उर्वरक, रक्षा उपकरण।
  • भारत के निर्यात: दवाइयाँ, मशीनरी, चाय, कॉफी, रसायन, वस्त्र।
मुख्य चुनौतियाँ
  • भारी व्यापार असंतुलन (Russia-favoured)।
  • भुगतान प्रणाली पर प्रतिबंधों का असर।
  • व्यापार विविधीकरण की आवश्यकता।

निष्कर्ष

  • पुतिन की भारत यात्रा संकेत देती है कि बदलती वैश्विक भू–राजनीति के बावजूद भारत–रूस साझेदारी स्थिर, लचीली और रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण बनी हुई है।
  • रक्षा, ऊर्जा, अंतरिक्ष, संपर्क और बहुध्रुवीय कूटनीति—ये पाँच क्षेत्र भविष्य की साझेदारी के मुख्य स्तंभ रहेंगे।
  • भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता के सिद्धांत पर चलते हुए सभी प्रमुख शक्तियों से संतुलित संबंध बनाकर रखेगा, और राष्ट्रीय हित प्रमुख रहेगा।

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