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SBI, HDFC और ICICI, D-SIB के रूप में बरकरार

Fri 05 Dec, 2025

संदर्भ :

  • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने दिसंबर 2025 में अपनी घोषणा में SBI, HDFC और ICICI बैंक को घरेलू प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण बैंकों (D-SIB) के रूप में बरकरार रखा है, एवं उनकी पहले की प्रणालीगत-जोखिम पूँजी (CET1 अधिभार) के स्तर को बनाए रखा है।

मुख्‍य बिन्‍दु :

  • RBI के 2025 के निर्णय का मुख्य बिंदु यह है कि D-SIB सूची और उनके 'बकेट' (Bucket) वर्गीकरण को 2024 की सूची के समान बनाए रखा गया है।
  • यह भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में इन तीन दिग्गजों के निरंतर प्रभुत्व और प्रणालीगत महत्त्व को रेखांकित करता है।

प्रणालीगत-जोखिम पूँजी और CET1 अधिभार :

  • D-SIBs को उनकी प्रणालीगत महत्त्व स्कोर (Systemic Importance Score - SIS) के आधार पर अलग-अलग 'बकेट' में रखा जाता है। बकेट जितना ऊँचा होगा, उस बैंक के लिए जोखिम भारित परिसंपत्तियों (Risk-Weighted Assets - RWA) के प्रतिशत के रूप में अतिरिक्त कॉमन इक्विटी टियर 1 (Common Equity Tier 1 - CET1) पूंजी की आवश्यकता उतनी ही अधिक होगी।
बैंक (Bank) D-SIB बकेट (Bucket) अतिरिक्त CET1 अधिभार (% of RWAs) CET1 की कुल न्यूनतम आवश्यकता (CCB सहित)
भारतीय स्टेट बैंक (SBI) 4 0. 80% 11.30%
HDFC बैंक 2 0. 40% 10.90%
ICICI बैंक 1 0.20% 10.70%

 

(नोट: कुल CET1 आवश्यकता में Basel III मानदंडों के अनुसार 5.5% की न्यूनतम आवश्यकता और 2.5% का पूंजी संरक्षण बफर (CCB) शामिल है।)

प्रमुख अवलोकन:

  • SBI का महत्त्व: SBI बकेट 4 में एकमात्र बैंक है, जो इसे भारतीय वित्तीय प्रणाली में सबसे बड़ा और सबसे महत्त्वपूर्ण संस्थान बनाता है।
  • HDFC और ICICI: ये निजी क्षेत्र के बैंक क्रमशः बकेट 2 और 1 में हैं। HDFC बैंक के HDFC लिमिटेड के साथ विलय के बाद भी, इसका प्रणालीगत महत्त्व बढ़ा है, लेकिन RBI ने इसकी बकेट को बरकरार रखा है।

निर्णय के निहितार्थ (Implications of the Decision)

A. वित्तीय स्थिरता पर प्रभाव (Impact on Financial Stability) : 

  • उन्नत सुरक्षा कवच (Enhanced Safety Net): अतिरिक्त CET1 पूंजी की आवश्यकता यह सुनिश्चित करती है कि इन बैंकों के पास किसी भी अप्रत्याशित झटके (Shock) या वित्तीय संकट को अवशोषित करने के लिए पर्याप्त बफर मौजूद हो।
  • यह पूरे बैंकिंग क्षेत्र के लिए स्थिरता प्रदान करता है।
  • बाज़ार में विश्वास (Market Confidence): D-SIB का दर्जा और अतिरिक्त पूँजी की आवश्यकता यह सार्वजनिक रूप से पुष्टि करती है कि ये बैंक नियामक की कड़ी निगरानी में हैं और विफल होने की स्थिति में सरकार/RBI द्वारा हस्तक्षेप की संभावना अधिक है।
  • ग्राहकों और निवेशकों का इन बैंकों पर विश्वास बढ़ता है।

B. बैंकों पर नियामक और परिचालन दबाव :

  • पूँजी अनुशासन (Capital Discipline): बैंकों को अपने पूंजी आधार को लगातार मजबूत बनाए रखना होता है, जो उन्हें जोखिमपूर्ण गतिविधियों को बढ़ावा देने से रोकता है।
  • व्यवसाय विकास में बाधा (Potential constraint on growth): अतिरिक्त पूंजी रखने की आवश्यकता का मतलब है कि बैंक को उस पूंजी को ऋण देने या अन्य व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए उपयोग करने के बजाय, उसे आरक्षित रखना होगा।
  • यह उनकी लाभप्रदता (Profitability) पर मामूली दबाव डाल सकता है, लेकिन यह सुरक्षा के लिए एक आवश्यक लागत है।

C. आर्थिक संकेत (Economic Signal) :

  • इस सूची का अपरिवर्तित रहना यह संकेत देता है कि भारतीय बैंकिंग प्रणाली में प्रणालीगत जोखिम की स्थिति स्थिर है।
  • पिछले वर्ष (2024) की तुलना में, इन बैंकों के सापेक्षिक महत्त्व स्कोर में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है जो उन्हें उच्च या निम्न बकेट में स्थानांतरित करता।
  • यह भारत की 'टू बिग टू फेल' (Too Big to Fail) नीति में निरंतरता को भी दर्शाता है।

घरेलू प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण बैंक (Domestic Systemically Important Banks : D-SIB)

  • परिभाषा: ऐसे बैंक जिनकी विफलता (failure) से देश की संपूर्ण वित्तीय प्रणाली पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है
  • जारीकर्ता संस्था: भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI)
  • पहली बार घोषणा: वर्ष 2015 में भारत ने पहली बार D-SIBs की सूची जारी की
  • उद्देश्य: वित्तीय स्थिरता बनाए रखना और बड़े बैंकों पर अतिरिक्त नियामकीय निगरानी रखना
  • अतिरिक्त पूंजी आवश्यकता: इन बैंकों को सामान्य बैंकों की तुलना में अतिरिक्त CET-1 पूंजी (Additional Common Equity Tier-1) रखनी होती है
  • मूल्यांकन आधार: बैंक का आकार, परस्पर जुड़ाव, जटिलता, प्रतिस्थापन क्षमता आदि

भारत में D-SIB की मौजूदा सूची :

  • बैंकों के नाम: भारतीय स्टेट बैंक (SBI), HDFC बैंक (HDFC Bank), और ICICI बैंक (ICICI Bank)
  • रिजर्व बैंक ने वर्ष 2015 में और वर्ष 2016 में SBI और ICICI बैंक को D-SIB के रूप में नामित किया था, HDFC बैंक को वर्ष 2017 में शामिल किया था
  • ग्रेडिंग: RBI इन्हें ‘Buckets’ में वर्गीकृत करता है—Bucket के अनुसार पूंजी की अतिरिक्त आवश्यकता बदलती है।
  • RBI की भूमिका: इन बैंकों पर विशेष निगरानी, स्ट्रेस टेस्ट, जोखिम प्रबंधन व अतिरिक्त रिपोर्टिंग आवश्यकताएँ लागू होती हैं।
  • अंतरराष्ट्रीय संदर्भ: यह ढांचा Basel-III मानकों और Financial Stability Board (FSB) के दिशानिर्देशों पर आधारित है।

महत्व:

  • अर्थव्यवस्था में वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करता है।
  • जनता का विश्वास बनाए रखता है।
  • बैंकिंग क्षेत्र में संकट (banking crisis) की संभावना कम करता है।

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