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संशोधित भूकंप डिजाइन संहिता, 2025

Tue 02 Dec, 2025

संदर्भ :

  • भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) ने संशोधित भूकंप डिजाइन संहिता, 2025 (IS 1893: 2025) के तहत नया भूकंपीय ज़ोनेशन मानचित्र जारी किया है।

मुख्‍य बिन्‍दु :

  • इस संशोधन का मुख्य आधार आधुनिक वैज्ञानिक अध्ययन और 'प्रोबेबिलिस्टिक सीस्मिक हैजर्ड असेसमेंट' (PSHA) है।
  • नए भूकंपीय मानचित्र में जोन 6 जोड़ा गया है, जो सर्वाधिक जोखिम वाले क्षेत्र का वर्गीकरण है। इसके अंतर्गत पूरा हिमालयी क्षेत्र, जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक शामिल किया गया है।
  • संशोधित मानचित्र अब भारत के 61% भू-भाग को मध्यम से उच्च जोखिम क्षेत्रों में वर्गीकृत करता है, जो पूर्व संस्करणों के 59% से अधिक है।
  • भारत की 75% जनसंख्या अब भूकंप-सक्रिय क्षेत्रों में अवस्थित है।

प्रमुख बदलाव और नई घोषणाएं

नए 'ज़ोन VI' (Zone 6) का गठन :

  • सबसे महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक बदलाव एक नए भूकंपीय क्षेत्र, ज़ोन VI (Zone 6), का परिचय है।
  • पहले की स्थिति: अब तक भारत में अधिकतम खतरा 'ज़ोन V' (Zone 5) माना जाता था।
  • नई स्थिति: पूरे हिमालयी आर्क (जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड से लेकर पूर्वोत्तर भारत और अरुणाचल प्रदेश तक) को अब इस नए 'सुपर-क्रिटिकल' ज़ोन VI में रखा गया है।
  • कारण: वैज्ञानिक अध्ययनों में पाया गया है कि इन क्षेत्रों में टेक्टोनिक तनाव (Tectonic Stress) उम्मीद से कहीं ज्यादा है और यहां 8.0 तीव्रता से अधिक के भूकंप की आशंका है।

जोखिम क्षेत्र का विस्तार (61% भारत) :

  • नए नक्शे के अनुसार, भारत का 61% भूभाग अब 'मध्यम से उच्च' (Moderate to High) भूकंपीय जोखिम वाले क्षेत्र में आता है।
  • कई शहर जो पहले सुरक्षित या कम जोखिम वाले माने जाते थे, उन्हें अब उच्च जोखिम वाले ज़ोन में अपग्रेड किया गया है।
  • दक्षिण भारत के कुछ हिस्से और गंगा के मैदानी इलाकों (Indo-Gangetic plains) के जोनिंग में भी बदलाव किए गए हैं।

'बाउंड्री रूल' (The Boundary Rule) :

  • नगर नियोजन और टाउन प्लानिंग के लिए एक सख्त 'बाउंड्री रूल' लागू किया गया है।
  • नियम: यदि कोई शहर या कस्बा दो भूकंपीय ज़ोन की सीमा (Border) पर स्थित है, तो उसे स्वचालित रूप से उच्च जोखिम वाले ज़ोन (Higher Zone) में माना जाएगा।
  • उद्देश्य: यह सुनिश्चित करना कि प्रशासनिक सीमाओं के कारण सुरक्षा में कोई कमी न रहे।

गैर-संरचनात्मक तत्वों (Non-Structural Elements) पर फोकस :

  • पहली बार, कोड में इमारत के गैर-संरचनात्मक हिस्सों की सुरक्षा को अनिवार्य किया गया है।
  • प्रावधान: यदि किसी गैर-संरचनात्मक तत्व (जैसे पानी की टंकी, भारी झूमर, फॉल्स सीलिंग, बड़े कांच के फसाड) का वजन इमारत के कुल वजन का 1% से अधिक है, तो उसे वैज्ञानिक तरीके से एंकर (Anchor) और सुरक्षित करना अनिवार्य होगा।
  • वजह: भूकंप के दौरान कई बार इमारत नहीं गिरती, लेकिन ये भारी चीजें गिरने से जान-माल का नुकसान होता है।

डिजाइन विधि में बदलाव (PSHA आधारित) :

  • पुराने 'डिटरमिनिस्टिक' (Deterministic) मॉडल की जगह अब PSHA (Probabilistic Seismic Hazard Assessment) को अपनाया गया है।
  • यह विधि न केवल पिछले भूकंपों के इतिहास को देखती है, बल्कि भविष्य में किसी विशेष क्षेत्र में भूकंप की संभावना और उसकी तीव्रता का भी गणितीय आकलन करती है।
  • इससे इंजीनियरों को इमारत डिजाइन करते समय 'ग्राउंड मोशन' (Ground Motion) का सटीक अनुमान मिलेगा।

निर्माण लागत पर प्रभाव :

  • नए मानकों के लागू होने से विशेषकर ज़ोन V और VI में निर्माण लागत में 10-15% की वृद्धि होने का अनुमान है।
  • मजबूत नींव, अधिक स्टील (Steel) और उच्च ग्रेड कंक्रीट का उपयोग अनिवार्य हो जाएगा।

मौजूदा इमारतों के लिए (Retrofitting) :

  • हालांकि कोड नई इमारतों के लिए अनिवार्य है, लेकिन यह पुरानी और महत्वपूर्ण इमारतों (जैसे अस्पताल, स्कूल, पुल) के लिए 'रेट्रोफिटिंग' (Retrofitting) की आवश्यकता पर जोर देता है।
  • सरकारों को अब अपनी मौजूदा अवसंरचना का ऑडिट नए कोड के आधार पर करना होगा।

बीमा और रियल एस्टेट :

  • रियल एस्टेट प्रोजेक्ट्स को अब भूकंप रोधी प्रमाणन (Earthquake Resistant Certification) प्राप्त करने के लिए सख्त जांच से गुजरना होगा।
  • बीमा कंपनियां (Insurance Companies) भी प्रीमियम तय करते समय इस नए ज़ोन मैप का उपयोग करेंगी।

 

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