वार्षिक भूजल गुणवत्ता रिपोर्ट, 2025
 
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वार्षिक भूजल गुणवत्ता रिपोर्ट, 2025

Mon 01 Dec, 2025

संदर्भ :

  • केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) ने अपनी वार्षिक भूजल गुणवत्ता रिपोर्ट 2025 जारी की है, जो मुख्य रूप से 2024 के मानसून पूर्व (प्री-मानसून) तथा मानसून पश्चात (पोस्ट-मानसून) अवधि में एकत्रित लगभग 15,000 भूजल नमूनों पर आधारित है।

प्रमुख बिन्‍दु :

  • रिपोर्ट का उद्देश्य : भूजल की गुणवत्ता का मूल्यांकन करना, प्रदूषण के स्रोतों की पहचान करना और स्वास्थ्य तथा कृषि पर इसके प्रभावों को उजागर करना
  • रिपोर्ट के अनुसार, भारत के भूजल को ट्रिपल कंटेमिनेशन चैलेंज (तीन गुना प्रदूषण चुनौती) का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें नाइट्रेट, फ्लोराइड और युरेनियम जैसे प्रदूषक प्रमुख हैं।
  • कुल नमूनों में से 28% से अधिक एक या अधिक पैरामीटर्स (मानकों) से ऊपर पाए गए, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा दर्शाता है।
  • हालांकि कृषि उपयोग के लिए भूजल ज्यादातर सुरक्षित है।
  • नमूना संग्रहण: कुल 340 हॉटस्पॉट्स (प्रदूषण वाले क्षेत्र) की निगरानी की गई। प्री-मानसून और पोस्ट-मानसून दोनों सत्रों में नमूने लिए गए ताकि मौसमी प्रभाव का आकलन हो सके।
  • मूल्यांकन मानक: भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) के पेयजल मानकों के आधार पर परीक्षण किया गया। प्रमुख पैरामीटर्स में pH, TDS (कुल घुलित ठोस), नाइट्रेट (NO3), फ्लोराइड (F), युरेनियम (U), लोहा (Fe), आर्सेनिक (As) आदि शामिल हैं।
  • सबसे बड़ी चिंता का विषय उत्तर-पश्चिम भारत (पंजाब, हरियाणा, दिल्ली) में यूरेनियम का बढ़ता स्तर और देश भर में नाइट्रेट का व्यापक प्रदूषण है

प्रमुख प्रदूषक और उनके रुझान

यूरेनियम (Uranium) - एक उभरता हुआ खतरा :

  • राष्ट्रीय स्थिति: कुल नमूनों में से लगभग 13-15% में यूरेनियम की मात्रा सुरक्षित सीमा (30 ppb - पार्ट्स पर बिलियन) से अधिक पाई गई।
  • हॉटस्पॉट (Hotspots): पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और राजस्थान।
  • पंजाब की स्थिति: यह सबसे अधिक प्रभावित राज्य है। यहाँ मानसून के बाद (post-monsoon) 62.5% नमूनों में यूरेनियम का स्तर खतरनाक पाया गया।
  • कारण: यह मुख्य रूप से 'जियोजेनिक' (प्राकृतिक) है, लेकिन भूजल के अत्यधिक दोहन और जल स्तर गिरने के कारण इसकी सांद्रता (concentration) बढ़ रही है। क्षारीय मिट्टी और बाइकार्बोनेट की उपस्थिति यूरेनियम को पानी में घुलने में मदद करती है।

नाइट्रेट (Nitrate) - सबसे व्यापक प्रदूषक :

  • व्यापकता: यह भारत में सबसे व्यापक रूप से फैला हुआ प्रदूषक है। लगभग 20.7% नमूनों में नाइट्रेट की मात्रा 45 mg/L की सीमा से अधिक थी।
  • सर्वाधिक प्रभावित राज्य: राजस्थान (50.5%), कर्नाटक (45.5%) और तमिलनाडु (36.3%)।
  • कारण: यह पूरी तरह से मानव-जनित (anthropogenic) है। इसका मुख्य कारण कृषि में यूरिया/उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग, सीवेज का रिसाव और पशु अपशिष्ट है।

फ्लोराइड (Fluoride) :

  • स्थिति: लगभग 8.05% नमूनों में फ्लोराइड सुरक्षित सीमा (1.5 mg/L) से ऊपर था।
  • प्रभावित क्षेत्र: राजस्थान, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश। राजस्थान में 41% नमूने प्रभावित पाए गए।
  • स्रोत: यह मुख्य रूप से प्राकृतिक (चट्टानों से निकलने वाला) है।

लवणता (Salinity/Electrical Conductivity) :

  • स्थिति: लगभग 7.23% नमूनों में लवणता अत्यधिक थी।
  • प्रभावित क्षेत्र: शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्र, विशेष रूप से पश्चिमी राजस्थान, दिल्ली और गुजरात।
  • प्रभाव: उच्च लवणता वाला पानी न तो पीने योग्य है और न ही सिंचाई के लिए उपयुक्त है, क्योंकि यह मिट्टी की उर्वरता को नष्ट कर देता है।

भारी धातुएँ (Heavy Metals) :

  • आर्सेनिक (Arsenic): गंगा और ब्रह्मपुत्र के मैदानी इलाकों (पश्चिम बंगाल, बिहार, असम) में एक प्रमुख समस्या बनी हुई है।
  • सीसा (Lead): दिल्ली में सीसा संदूषण (Lead contamination) के मामले सबसे अधिक देखे गए हैं, जो औद्योगिक कचरे और बैटरी रीसाइक्लिंग से जुड़ा हो सकता है।
  • मैंगनीज और आयरन: इनका स्तर भी कई जगहों पर (विशेषकर असम और पूर्वी भारत में) सीमा से अधिक पाया गया।

क्षेत्रीय वितरण और हॉटस्पॉट्स :

  • उत्तर-पश्चिमी भारत युरेनियम प्रदूषण का मुख्य हॉटस्पॉट है, जहां भूगर्भीय कारक (जैसे ग्रेनाइटिक चट्टानें), भूजल क्षय और गहरी पंपिंग प्रमुख कारण हैं। पंजाब में अत्यधिक उर्वरक उपयोग भी युरेनियम लीकेज को बढ़ावा दे रहा है।
  • पंजाब: 62.5% नमूने युरेनियम से प्रभावित – देश में सबसे अधिक। नाइट्रेट भी व्यापक।
  • हरियाणा: युरेनियम 40-50%, फ्लोराइड उच्च।
  • दिल्ली: 13-15% नमूने युरेनियम से दूषित (83 में से 24 नमूने >30 PPB)। दिल्ली दैनिक 125 MGD भूजल का उपयोग करती है, जो स्वास्थ्य जोखिम बढ़ाता है। रिपोर्ट दिल्ली को तीसरे सबसे प्रभावित राज्य के रूप में चिह्नित करती है।
  • उत्तर प्रदेश/राजस्थान: युरेनियम और फ्लोराइड हॉटस्पॉट।
  • दक्षिण भारत (तमिलनाडु, कर्नाटक, छत्तीसगढ़): मुख्य रूप से जियोजेनिक युरेनियम, लेकिन नाइट्रेट कम।
  • पूर्वी भारत: न्यूनतम प्रदूषण, लेकिन नाइट्रेट बढ़ रहा है।

कारणों का विश्लेषण :

  • मानवीय (एंथ्रोपोजेनिक): कृषि (उर्वरक/कीटनाशक रनऑफ – 87% भूजल सिंचाई के लिए उपयोग), औद्योगिक अपशिष्ट, शहरीकरण।
  • प्राकृतिक (जियोजेनिक): चट्टानों का अपक्षय, भूजल क्षय से गहरे स्तरों पर प्रदूषक उभरना। भारत में भूजल निकासी 60.4% है (2009 से स्थिर), जो समस्या को बढ़ावा देता है।
  • मौसमी प्रभाव: मानसून रिचार्ज से कुछ सुधार, लेकिन अपर्याप्त वर्षा वाले क्षेत्रों में कोई बदलाव नहीं।

सिफारिशें :

  • गरानी: 340 हॉटस्पॉट्स पर ग्रिड-आधारित ट्रैकिंग जारी रखें; वार्षिक सर्वेक्षण बढ़ाएं।
  • उपचार: युरेनियम के लिए आयन एक्सचेंज/रिवर्स ऑस्मोसिस तकनीक; नाइट्रेट के लिए जैविक खेती को बढ़ावा।
  • नीतिगत: उर्वरक सब्सिडी पर नियंत्रण, वर्षा जल संचयन को अनिवार्य करें। प्रभावित क्षेत्रों में वैकल्पिक जल स्रोत (जैसे यमुना लिंकिंग) विकसित करें।
  • शोध: जियोकेमिकल मैपिंग और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का अध्ययन।

प्रदूषकों के अनुमेय सीमा से अधिक होने पर स्वास्थ्य प्रभाव :

प्रदूषक स्वास्थ्य पर प्रभाव (अनुमेय सीमा से ऊपर होने पर)
यूरेनियम कैंसर का जोखिम बढ़ता है; किडनी विषाक्तता (Nephrotoxicity)
सीसा (Lead) तंत्रिका तंत्र की क्षति; बच्चों में मानसिक और शारीरिक विकास में रुकावट
लौह (Iron) धात्विक स्वाद; संवेदनाहारी प्रभाव; लौह-जीवाणुओं की वृद्धि बढ़ती है, जिससे पाइप जाम आदि
नाइट्रेट (Nitrate) शिशुओं में ब्लू बेबी सिंड्रोम (Methemoglobinemia) का कारण
फ्लोराइड (Fluoride) दाँतों का धब्बेदार होना (Dental Fluorosis); हड्डियों का रोग और दर्द (Skeletal Fluorosis)
क्लोरीन (Chlorine) आँख/नाक में जलन; पेट दर्द या गैस्ट्रिक समस्याएँ
जिंक (Zinc) जठरांत्र संबंधी जलन—मतली, उल्टी, दस्त
मैंगनीज (Manganese) तंत्रिका तंत्र संबंधी समस्याएँ; बच्चों और शिशुओं में विकासगत दुष्प्रभाव
आर्सेनिक (Arsenic) त्वचा क्षति; त्वचा पर दाग; कैंसर का बढ़ा जोखिम
ताँबा (Copper) यकृत क्षति; उल्टी/मतली; लंबे समय तक सेवन पर किडनी और लीवर को नुकसान
सोडियम / SAR (Sodium) उच्च रक्तचाप; हृदय संबंधी समस्याएँ; मांसपेशियों में ऐंठन; नींद में बाधा

 

केंद्रीय भूमिजल बोर्ड (CGWB) :

  • मुख्यालय: फरीदाबाद, हरियाणा
  • स्थापना : 1970, अन्वेषणात्मक नलकूप संगठन का नाम बदलकर
  • नोडल मंत्रालय: जल शक्ति मंत्रालय के अधीन
  • भूमिका: देश के भूजल संसाधनों का प्रबंधन, अन्वेषण, निगरानी व विनियमन करना
  • यह पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत स्थापित केंद्रीय भूमिजल प्राधिकरण (CGWA) के रूप में भी कार्य कर रहा है।

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