08 December, 2025
वैश्विक मीथेन स्थिति रिपोर्ट, 2025
Tue 18 Nov, 2025
संदर्भ :
- संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) और क्लाइमेट एंड क्लीन एयर कोएलिशन (CCAC) ने संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP30) के दौरान ‘वैश्विक मीथेन स्थिति रिपोर्ट, 2025’ जारी की है।
मुख्य बिन्दु :
- यह रिपोर्ट ग्लोबल वार्मिंग में मीथेन की भूमिका और उत्सर्जन को कम करने की दिशा में वैश्विक प्रगति का मूल्यांकन करती है।
- रिपोर्ट में ऊर्जा, कृषि और अपशिष्ट क्षेत्रों में तत्काल कार्रवाई पर जोर दिया गया है, जिसमें 70% तक कमी के अवसरों को लागत-प्रभावी बताया गया है।
मुख्य निष्कर्ष :
- मीथेन की स्थिति: मीथेन, CO2 से 84 गुना अधिक ऊष्मा अवशोषित करता है और वायुमंडल में इसकी सांद्रता प्री-इंडस्ट्रियल स्तर से 2.5 गुना बढ़ चुकी है।
- उत्सर्जन स्तर: 2020 में उत्सर्जन 352 मिलियन टन था और यह 2030 तक 369 मिलियन टन तक बढ़ने का अनुमान है।
- ऊर्जा क्षेत्र का योगदान: 2024 में ऊर्जा क्षेत्र से लगभग 145 मिलियन टन मीथेन का उत्सर्जन हुआ, जिसमें तेल संचालन (45 एमटी), प्राकृतिक गैस संचालन (35 एमटी), कोयला खनन (40 एमटी) और परित्यक्त कुएं (3 एमटी) शामिल हैं।
- वैश्विक प्रयास: वैश्विक मीथेन प्लेज (Global Methane Pledge) में 159 देश शामिल हैं, लेकिन चीन, भारत और रूस जैसे बड़े उत्सर्जक देश अभी भी इससे बाहर हैं।
- वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा (Global Methane Pledge - GMP): वर्तमान प्रतिबद्धताएँ और नीतियाँ GMP के लक्ष्य (2030 तक 2020 के स्तर से 30% की सामूहिक कटौती) को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।
- मौजूदा कार्यान्वयन से 2030 तक उत्सर्जन में केवल लगभग 8% की कमी आने की संभावना है
कमी के अवसर :
- तकनीकी समाधान: मीथेन उत्सर्जन में 70% तक कमी लीक डिटेक्शन, कम उत्सर्जन वाले उपकरणों का उपयोग और फ्लेयरिंग (उत्सर्जन को जलाना) प्रतिबंधों से संभव है।
- लागत-प्रभावशीलता: इन उपायों को लागू करना लागत-प्रभावी है, क्योंकि पकड़ी गई मीथेन गैस को बेचा जा सकता है।
सबसे बड़े उत्सर्जक क्षेत्र :
- कृषि: लगभग 42% (पशुधन और धान की खेती)
- ऊर्जा: लगभग 38% (तेल, गैस और कोयला खनन)
- अपशिष्ट (Waste): लगभग 20%
भारत की स्थिति :
- तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक: भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा मेथेन उत्सर्जक है।
- योगदान: 2020 में भारत ने लगभग 3 मिलियन टन मेथेन का उत्सर्जन किया, जो वैश्विक उत्सर्जन का 9% है।
- कृषि में सबसे बड़ा हिस्सा: भारत वैश्विक कृषि मेथेन में 12% का योगदान देता है, जो विश्व में सबसे अधिक हिस्सा है।
- मुख्य स्रोत: पशुधन और धान की खेती प्रमुख चालक हैं।
- आवश्यकता: रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में चावल, पशुधन और खाद प्रबंधन में कमी लाने के मार्ग मौजूद हैं, लेकिन व्यापक और न्यायसंगत रूप से अपनाने के लिए प्रौद्योगिकियों की पहचान और कार्यान्वयन अभी बाकी है।
वर्ष 2030 वैश्विक मेथेन प्रतिज्ञा (GMP) :
- लॉन्च: COP-26 के दौरान कनाडा और यूरोपीय संघ के सह-नेतृत्व में
- सदस्यता: 159 देश और यूरोपीय आयोग शामिल
- मुख्य प्रतिबद्धता: वर्ष 2030 तक वैश्विक मेथेन उत्सर्जन में कम-से-कम 30% की कमी लाना (वर्ष 2020 के स्तर से)
- जलवायु लक्ष्यों के साथ संरेखण: स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा और आर्थिक परिणामों में सुधार करते हुए 1.5°C को पहुँच के भीतर रखने का समर्थन करता है
- चैंपियंस समूह: कनाडा, यूरोपीय संघ, जर्मनी, जापान, माइक्रोनेशिया, नाइजीरिया और UK द्वारा समर्थित
मीथेन गैस :
- रासायनिक सूत्र: CH₄
- सरलतम हाइड्रोकार्बन
- रंगहीन, गंधहीन, अत्यधिक ज्वलनशील गैस
- प्राकृतिक गैस का प्रमुख घटक: लगभग 70–90%
- ग्रीनहाउस गैसों में CO₂ के बाद दूसरी सबसे प्रभावशाली गैस
प्राकृतिक स्रोत :
- आर्द्रभूमियाँ (Wetlands): बैक्टीरिया द्वारा जैविक पदार्थों के सड़न से मीथेन का उत्पादन
- जैविक अपघटन: चावल की खेती, जुगाली करने वाले पशुओं (Cattle, Sheep) से उत्सर्जन
- पारंपरिक खनिज ईंधन (Fossil Fuels): कोयला खदानें, तेल और गैस क्षेत्रों से उत्सर्जन
- समुद्री हाइड्रेट्स: गहरे समुद्र में जमा बर्फनुमा मीथेन (Methane Hydrates)









