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राज्यों के वित्त की स्थिति रिपोर्ट 2025

Fri 07 Nov, 2025

संदर्भ :

  • PRS लेजिस्लेटिव रिसर्च ने ‘राज्यों के वित्त की स्थिति रिपोर्ट 2025’ (State of State Finances 2025) जारी की है, जो भारतीय राज्यों की वित्तीय स्थिरता, राजस्व क्षमता और व्यय पैटर्न पर प्रकाश डालती है।

मुख्य निष्कर्ष

राजकोषीय घाटा नियंत्रण:

  • राज्यों ने सामूहिक रूप से अपने सकल राजकोषीय घाटे (GFD) को GDP के 3% के राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (FRBM) लक्ष्य के आसपास बनाए रखा है।
  • वित्त वर्ष 2024-25 के लिए GFD GDP के 3.2% पर अनुमानित है, जो कि संतोषजनक सीमा के भीतर है।

पूंजीगत व्यय में वृद्धि:

  • राज्यों का पूंजीगत व्यय (Capital Expenditure) लगातार बढ़ा है।
  • 2024-25 के बजट अनुमानों में यह GDP के 3.1% तक पहुँच गया है, जो विकास-उन्मुख निवेश पर बढ़ते फोकस को दर्शाता है।

ऋण में कमी:

  • राज्यों का कुल बकाया ऋण-से-GDP अनुपात मार्च 2021 के 31% से घटकर मार्च 2024 में 28.5% हो गया है (हालांकि यह अभी भी महामारी-पूर्व स्तर से अधिक है)।

प्रमुख चुनौतियाँ और जोखिम

उच्च प्रतिबद्ध व्यय :

  • PRS रिपोर्ट के अनुसार, 2023-24 में राज्यों ने अपनी राजस्व प्राप्तियों का लगभग 62% हिस्सा वेतन, पेंशन, ब्याज भुगतान और सब्सिडी जैसे प्रतिबद्ध व्ययों पर खर्च किया।
  • यह विकास-उन्मुख पूंजीगत व्यय के लिए वित्तीय गुंजाइश को सीमित करता है।

बढ़ता ऋण बोझ:

  • राज्यों का बकाया ऋण (28.5% of GDP) अभी भी FRBM लक्ष्य (20%) से काफी अधिक है।
  • गुजरात, महाराष्ट्र और ओडिशा को छोड़कर अधिकांश राज्य इस लक्ष्य से बाहर हैं।
  • ब्याज लागत राजस्व वृद्धि से तेज दर (सालाना लगभग 10%) से बढ़ रही है।

सब्सिडी का विस्तार:

  • नकद हस्तांतरण योजनाओं (विशेष रूप से महिलाओं के लिए) का विस्तार हो रहा है।
  • 2025-26 तक 12 राज्यों में ऐसी योजनाएँ लागू होने का अनुमान है, जिससे वित्तीय दबाव बढ़ रहा है।
  • विद्युत सब्सिडी और कृषि ऋण माफी पर भी उच्च खर्च हो रहा है।

GST राजस्व हिस्सेदारी में कमी:

  • GST लागू होने के बाद राज्यों को GST में शामिल करों से प्राप्त राजस्व (GDP के प्रतिशत के रूप में) कम हुआ है (2015-16 के 6.5% से 2023-24 में 5.5%)।
  • बिना शर्त वाले (Untied) केंद्रीय हस्तांतरण की हिस्सेदारी भी घटी है, जिससे राज्यों की खर्च की स्वायत्तता कम हुई है।

प्रमुख सिफारिशें :

  • ऋण समेकन: ऋण के स्तर को कम करने के लिए स्पष्ट और पारदर्शी नीति बनाना।
  • सब्सिडी का युक्तिकरण: अनुत्पादक और मुफ्त सब्सिडी को तर्कसंगत बनाना ताकि उत्पादक पूंजीगत व्यय के लिए संसाधन उपलब्ध हों।
  • राजस्व वृद्धि: गैर-कर राजस्व (जैसे उपयोगकर्ता शुल्क, खनन रॉयल्टी) बढ़ाना और GST स्लैब को सुव्यवस्थित करना।
  • राजकोषीय पारदर्शिता: बजट से इतर उधारियाँ (Off-Budget Borrowings) और गारंटी देनदारियों की एक समान रिपोर्टिंग सुनिश्चित करना।

 

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