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गैस उत्सर्जन तीव्रता (जीईआई) लक्ष्य नियम, 2025

Thu 16 Oct, 2025

संदर्भ

भारत सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने हाल ही में देश के औद्योगिक उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन तीव्रता (GEI) लक्ष्य नियम, 2025 अधिसूचित किए हैं।

  • पृष्ठभूमि

यह नियम भारत के जलवायु लक्ष्यों को कानूनी रूप से सुदृढ़ करते हैं और पेरिस जलवायु समझौता (2015) तथा राष्ट्रीय रूप से निर्धारित योगदान (NDCs) के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को मजबूत करते हैं।

  • इन नियमों का उद्देश्य औद्योगिक क्षेत्र में ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देना, कार्बन उत्सर्जन को कम करना, और एक बाज़ार आधारित कार्बन ट्रेडिंग प्रणाली विकसित करना है जिससे पर्यावरण और उद्योग दोनों का संतुलित विकास हो सके।

मुख्य विशेषताएँ

1. कानूनी रूप से बाध्यकारी लक्ष्य (Legally Binding Targets)

भारत में पहली बार उद्योगों के लिए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की सीमा कानूनी रूप से अनिवार्य की गई है।

अब प्रत्येक उद्योग को प्रति उत्पाद (जैसे प्रति टन सीमेंट या एल्युमिनियम) तय मात्रा से अधिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जित नहीं करनी होगी।

2. शामिल औद्योगिक क्षेत्र (Industry Coverage)

इन नियमों के तहत कुल 282 औद्योगिक इकाइयों को शामिल किया गया है जो एल्युमिनियम, सीमेंट, क्लोर-एल्कली, और पल्प एंड पेपर उद्योगों से संबंधित हैं।

ये सभी भारत के सबसे अधिक ऊर्जा-उपयोग करने वाले और प्रदूषण-उत्पन्न करने वाले क्षेत्र हैं।

3. उत्सर्जन माप का मानक (Measurement Standard)

उत्सर्जन को tCO₂e (टन कार्बन डाइऑक्साइड समकक्ष) इकाई में मापा जाएगा।

इसमें केवल कार्बन डाइऑक्साइड ही नहीं बल्कि मीथेन (CH₄) और नाइट्रस ऑक्साइड (N₂O) जैसी अन्य गैसों को भी शामिल किया गया है, जिनका वैश्विक तापमान पर अलग-अलग प्रभाव (GWP) होता है।

4. कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग स्कीम (CCTS), 2023 से जुड़ाव

ये नियम भारत की कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग स्कीम (CCTS), 2023 को लागू करने का व्यावहारिक आधार प्रदान करते हैं।

इससे उद्योगों को अपने उत्सर्जन कम करने पर कार्बन क्रेडिट प्रमाणपत्र (Carbon Credit Certificates) अर्जित होंगे जिन्हें घरेलू बाजार में बेचा जा सकेगा।

5. बाजार आधारित प्रोत्साहन तंत्र (Market-Driven Incentive System)

जो उद्योग अपने निर्धारित लक्ष्य से कम उत्सर्जन करेंगे, उन्हें ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE) द्वारा कार्बन क्रेडिट दिए जाएंगे।

दूसरी ओर, जो उद्योग लक्ष्य से अधिक उत्सर्जन करेंगे, वे बाजार से क्रेडिट खरीद सकते हैं या केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा लगाए गए पर्यावरण मुआवज़ा (Environmental Compensation) का भुगतान करेंगे।

दंड और अनुपालन प्रणाली (Penalty and Compliance Mechanism)

1. कार्बन क्रेडिट खरीदें:

जो उद्योग अपने लक्ष्य पूरे नहीं कर पाएंगे, वे घरेलू कार्बन बाजार से कार्बन क्रेडिट खरीदकर अपनी कमी पूरी कर सकते हैं।

2. जुर्माना भरें:

अनुपालन न करने पर CPCB द्वारा पर्यावरण मुआवज़ा लगाया जाएगा।

यह दंड उद्योगों को पर्यावरणीय जिम्मेदारी निभाने के लिए प्रेरित करेगा।

महत्व और प्रभाव (Significance and Impact)

1. भारत के वैश्विक जलवायु लक्ष्यों से जुड़ा कदम:

यह नियम भारत की उस प्रतिबद्धता को मजबूत करता है जिसके तहत 2030 तक 2005 के स्तर की तुलना में GDP की उत्सर्जन तीव्रता में 45% की कमी लाने और 2070 तक नेट ज़ीरो हासिल करने का लक्ष्य रखा गया है।

2. औद्योगिक नवाचार को बढ़ावा:

ये नियम उद्योगों को स्वच्छ तकनीक, ऊर्जा-कुशल मशीनरी, और ग्रीन मैन्युफैक्चरिंग अपनाने के लिए प्रेरित करेंगे।

3. घरेलू कार्बन बाजार को प्रोत्साहन:

GEI नियम भारत के कार्बन ट्रेडिंग मार्केट को एक मजबूत कानूनी और आर्थिक आधार प्रदान करते हैं।

4. सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) की पूर्ति:

विशेष रूप से SDG 7 (सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा) और SDG 13 (जलवायु कार्रवाई) को पूरा करने में मददगार साबित होंगे।

5. पारदर्शिता और उत्तरदायित्व:

उत्सर्जन की निगरानी, रिपोर्टिंग और मूल्यांकन के लिए केंद्रीकृत प्रणाली उद्योगों की पारदर्शिता और उत्तरदायित्व सुनिश्चित करेगी।

चुनौतियाँ और आगे की राह (Challenges and Way Forward)

  • छोटे उद्योगों के लिए अनुपालन कठिन: तकनीकी और आर्थिक संसाधनों की कमी उन्हें नियमों के पालन में मुश्किलें पैदा कर सकती है।
  • क्षमता निर्माण की आवश्यकता: उद्योगों को जागरूक करने, प्रशिक्षित करने और निगरानी प्रणाली को मज़बूत करने की आवश्यकता है।
  • कार्बन बाज़ार की स्थिरता: इस योजना की सफलता कार्बन मार्केट की पारदर्शिता और विश्वसनीयता पर निर्भर करेगी।

निष्कर्ष (Conclusion)

  • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन तीव्रता (GEI) लक्ष्य नियम, 2025 भारत की जलवायु नीति के इतिहास में एक ऐतिहासिक कदम है।
  • यह न केवल औद्योगिक उत्सर्जन को नियंत्रित करने की दिशा में ठोस कार्ययोजना प्रस्तुत करता है, बल्कि भारत को जलवायु-सचेत आर्थिक शक्ति के रूप में स्थापित करने का मार्ग भी प्रशस्त करता है।
  • विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाते हुए यह कदम भारत को वैश्विक मंच पर एक जिम्मेदार, सतत और हरित राष्ट्र के रूप में स्थापित करेगा।

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