23 September, 2025
प्राचीन त्रिपुर सुंदरी मंदिर का उद्घाटन
Wed 24 Sep, 2025
संदर्भ :
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने त्रिपुरा के गोमती जिले के उदयपुर में स्थित 524 वर्ष प्राचीन त्रिपुरा सुंदरी मंदिर का पुनर्विकसित परिसर का उद्घाटन किया।
मुख्य बिन्दु :
- यह मंदिर भारत के 51 शक्तिपीठों में से एक है और धार्मिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
- यह स्थल प्राचीन शक्ति पीठ को Pilgrimage Rejuvenation and Spiritual, Heritage Augmentation Drive (PRASHAD) के तहत पुनर्विकसित किया गया है
विकास कार्य और लागत :
- कुल लागत: लगभग ₹34.43 करोड़
- परियोजना के तहत पवित्र शक्ति पीठ को संरक्षित रखते हुए सुविधाओं, कनेक्टिविटी और इंफ्रास्ट्रक्चर को उन्नत किया गया।
- आसपास के क्षेत्र को आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित किया गया, जबकि इसकी ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता को सुरक्षित रखा गया।
परियोजना की शुरुआत और विस्तार :
- वित्तीय वर्ष 2020-21 में ₹34.43 करोड़ की लागत पर यह परियोजना स्वीकृत
- 28 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में 54 परियोजनाएं शुरू की गई हैं
- प्रमुख तीर्थस्थलों और विरासत स्थलों को विश्व स्तरीय सुविधाओं से समृद्ध किया जा रहा है
उद्देश्य और महत्व :
- प्रधानमंत्री मोदी के “विकास भी, विरासत भी” के विज़न को प्रतिबिंबित करना
- PRASHAD योजना विरासत संरक्षण को विकास के साथ जोड़ती है
- उत्तर-पूर्व भारत को आध्यात्मिक पर्यटन का केंद्र बनाने में सहायक।
त्रिपुर सुंदरी मंदिर
- मंदिर के अन्य नाम: त्रिपुरेश्वरी मंदिर, माताबाड़ी
- निर्माता: वर्ष 1501 में तत्कालीन त्रिपुरा के शासक महाराजा धान्य माणिक्य द्वारा निर्मित
- प्रमुख देवता: देवी त्रिपुर सुंदरी, जिन्हें शक्ति पीठ के रूप में पूजा जाता है
- स्थान: पश्चिम त्रिपुरा जिला, बनगांव के पास पहाड़ी क्षेत्र, अगार्टला से लगभग 55 किलोमीटर दूरी पर
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व :
- त्रिपुरा सुंदरी मंदिर भारत के 51 शक्तिपीठों में से एक है, जहां माना जाता है कि मां सती के शरीर का हिस्सा गिरा था।
- देवी त्रिपुर सुंदरी को शक्ति और सौंदर्य की देवी के रूप में पूजा जाता है।
- यह मंदिर त्रिपुरा का सांस्कृतिक और धार्मिक केंद्र है, जहां तांत्रिक साधनाएं भी होती हैं।
- प्रमुख त्योहारों में त्रिपुरा सुंदरी जयंती, दुर्गा पूजा और नवरात्रि उत्सव बड़े धूमधाम से मनाए जाते हैं।
स्थापत्य और इतिहास :
- मंदिर का निर्माण हिंदू शिल्पकला और स्थानीय स्थापत्य शैली का संगम है।
- मंदिर कछुए की पीठ जैसी पहाड़ियों पर बना है, जिसे 'कुर्भपीठ' कहा जाता है।
- माता की बड़ी मूर्ति और 'छोटो मा' नामक छोटी मूर्ति मंदिर की खास पहचान हैं।
पुनर्विकास (प्रसाद योजना के तहत) :
- त्रिपुरा सरकार ने इसमें ₹7 करोड़ की हिस्सेदारी दी।
- पुनर्निर्माण में मंदिर परिसर का सौंदर्यीकरण, नया प्रवेश द्वार, संगमरमर का फर्श, जल निकासी व्यवस्था, पेड़ा स्टॉल, ध्यान कक्ष, अतिथि आवास, प्रशासनिक कार्यालय और पेयजल सुविधाओं का समावेश है।
- लक्षित है कि यह मंदिर आध्यात्मिक पर्यटन का केंद्र बने, जिससे स्थानीय उद्योग, रोजगार और सांस्कृतिक पुनरुत्थान को बढ़ावा मिलेगा।
- पहुंच और परिवहन :
- अगार्टला से सड़क मार्ग द्वारा लगभग 55 किलोमीटर की दूरी पर स्थित।
- नजदीकी रेलवे स्टेशन और एयरपोर्ट भी अगार्टला में हैं।
सामाजिक-आर्थिक प्रभाव :
- मंदिर के पुनर्विकास से धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन मिलेगा।
- पर्यटन से जुड़े व्यवसाय, जैसे होटल, यातायात सेवाएं, हस्तशिल्प, आदि का विकास होगा।
- यह पुनर्निर्माण न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि क्षेत्रीय सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण और संवर्धन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
प्रसाद (PRASAD) योजना
- पूरा नाम: प्रसाद योजना का पूरा नाम 'तीर्थयात्रा कायाकल्प और आध्यात्मिक, विरासत संवर्धन अभियान' (Pilgrimage Rejuvenation and Spiritual, Heritage Augmentation Drive)
- शुरुआत: इस योजना को भारत सरकार द्वारा वर्ष 2014-15 में
- उद्देश्य: भारत के धार्मिक और सांस्कृतिक स्थलों का संरक्षण और विकास करना, ताकि तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को सुविधाएँ, कनेक्टिविटी और आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर उपलब्ध हो
- कार्यान्वयन: यह एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है, जिसका अर्थ है कि इसका 100% वित्तपोषण केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है।
परिणाम और प्रभाव :
- विरासत संरक्षण को आधुनिक सुविधाओं के साथ जोड़कर, तीर्थस्थलों को आस्था, संस्कृति और अर्थव्यवस्था के केंद्र में बदला
- पूर्वोत्तर भारत में आध्यात्मिक पर्यटन का केंद्र स्थापित किया
- परियोजनाओं ने स्थानीय रोजगार और आजीविका के अवसर बढ़ाए
- पर्यटन अवसंरचना मजबूत हुई और पर्यटक आकर्षण बढ़ा
परियोजनाएँ और वित्तीय विवरण :
- अगस्त 2025 तक: 28 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में कम से कम 54 परियोजनाएँ
- स्वीकृत सहायता राशि: ₹1,168 करोड़ से अधिक
- परियोजनाएँ: प्राचीन मंदिर, सूफी तीर्थस्थल, बौद्ध मठ, ऐतिहासिक नगर
- उद्देश्य: विश्व स्तरीय आध्यात्मिक पर्यटन केंद्र बनाना
पूर्वोत्तर भारत पर प्रभाव :
- योजना ने पूर्वोत्तर क्षेत्र के आध्यात्मिक और आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया
- घरेलू पर्यटकों की संख्या में वृद्धि, गाँवों में होमस्टे, युवा गाइडों के लिए रोजगार
- पर्यावरण, सांस्कृतिक पर्यटन और विरासत का जीर्णोद्धार स्थायी आजीविका में परिवर्तित
- प्रशाद योजना का सफ़र 2015-16 से कामाख्या मंदिर से शुरू हुआ और धीरे-धीरे मिज़ोरम, मेघालय, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा में विस्तारित
प्रमुख परियोजनाएँ (राज्यवार) :
क्रम सं. | राज्य | परियोजना का नाम | स्वीकृति वर्ष |
1 | असम | गुवाहाटी और आसपास कामाख्या मंदिर एवं तीर्थस्थल विकास | 2015-16 |
2 | नागालैंड | तीर्थयात्रा अवसंरचना विकास | 2018-19 |
3 | मेघालय | तीर्थयात्रा सुविधा विकास | 2020-21 |
4 | अरुणाचल प्रदेश | परशुरामकुंड, लोहितजिला विकास | 2020-21 |
5 | सिक्किम | युक्सोम चार संरक्षक संत तीर्थयात्रा सुविधा | 2020-21 |
6 | त्रिपुरा | उदयपुर त्रिपुर सुंदरी मंदिर विकास | 2020-21 |
7 | मिजोरम | तीर्थयात्रा और विरासत पर्यटन हेतु बुनियादी ढांचा | 2022-23 |
8 | नागालैंड | ज़ुन्हेबोटो तीर्थयात्रा पर्यटन बुनियादी ढांचा | 2022-23 |
9 | मिजोरम | चंफाई जिला वांगछिया बुनियादी सुविधाएँ | 2024-25 |