22 September, 2025
भारत को ISA से उत्तर-पश्चिमी हिंद महासागर में बहुमूल्य धातु अन्वेषण अनुबंध
Wed 17 Sep, 2025
संदर्भ :
- भारत ने अंतरराष्ट्रीय समुद्र तल प्राधिकरण (International Seabed Authority - ISA) से उत्तर-पश्चिमी हिंद महासागर के कार्ल्सबर्ग रिज (Carlsberg Ridge) में पॉलीमेटेलिक सल्फाइड (Polymetallic Sulphides - PMS) की खोज के लिए 15 वर्षीय अन्वेषण अनुबंध पर हस्ताक्षर किया।
मुख्य बिन्दु :
- अनुबंध भारत को 10,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विशेष अन्वेषण अधिकार प्रदान करता है।
- यह वैश्विक स्तर पर कार्ल्सबर्ग रिज में PMS अन्वेषण के लिए पहला लाइसेंस है, जो भारत को इस क्षेत्र में अग्रणी बनाता है।
- हस्ताक्षर तिथि: 15 सितंबर 2025, नई दिल्ली में ISA महासचिव लेटिसिया कारवाल्हो और पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव डॉ. एम. रविचंद्रन के बीच
- अवधि: 15 वर्ष
- क्षेत्र: कार्ल्सबर्ग रिज के भाग, उत्तर-पश्चिमी हिंद महासागर, 10,000 वर्ग किलोमीटर
- महत्व: यह वैश्विक पहला लाइसेंस है, जो भारत को सबसे बड़ा आवंटित क्षेत्र वाला देश बनाता है। यह UNCLOS और 1994 कार्यान्वयन समझौते के अनुरूप है
- आवेदन प्रक्रिया: जनवरी 2024 में भारत ने दो आवेदन जमा किए थे - एक PMS के लिए (कार्ल्सबर्ग रिज) और दूसरा कोबाल्ट-समृद्ध क्रस्ट्स के लिए (अफानासी-निकितिन सीमाउंट)
भारत के लिए महत्व
आर्थिक महत्व :
- खनिज सुरक्षा: EV, नवीकरणीय ऊर्जा और उच्च तकनीक उद्योगों के लिए आवश्यक धातुओं की घरेलू आपूर्ति सुनिश्चित।
- तकनीकी विकास: गहरे समुद्री खनन तकनीक (AUVs, खनन मशीनें) को बढ़ावा।
- नीति समर्थन: 'दीप ओशन मिशन' (2021) के तहत गहरे समुद्री खनन के लक्ष्यों को मजबूती।
सामरिक महत्व :
- वैश्विक प्रतिस्पर्धा: चीन, रूस जैसे देशों के साथ प्रतिस्पर्धा में भारत को बढ़त।
- क्षेत्रीय रणनीति: हिंद महासागर में उपस्थिति से ‘SAGAR’ (Security and Growth for All in the Region) नीति को बल।
पर्यावरणीय और वैश्विक प्रभाव :
- चुनौतियां: गहरे समुद्री खनन से समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को खतरा – जैव विविधता हानि और हाइड्रोथर्मल जीवों पर असर।
- नियम: ISA अभी शोषण विनियम (Mining Code) पर कार्यरत है, अन्वेषण पर्यावरणीय मानकों के अधीन रहेगा।
- वैश्विक परिप्रेक्ष्य: ISA के 30 अनुबंधों में विकासशील देशों और छोटे द्वीप राष्ट्रों की भागीदारी। भारत का कदम सतत विकास और रणनीतिक संसाधन सुरक्षा की दिशा में अहम।
भारत की पूर्व अनुबंध :
- 2002 अनुबंध: केंद्रीय हिंद महासागर बेसिन (Central Indian Ocean Basin - CIOB) में पॉलीमेटेलिक नोड्यूल्स के लिए, जो 75,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को कवर करता है। यह अनुबंध 25 मार्च 2002 को हस्ताक्षरित हुआ और 2017 तथा 2022 में विस्तारित किया गया, जो 24 मार्च 2027 तक वैध है।
- 2016 अनुबंध: हिंद महासागर रिज (Central Indian Ridge - CIR और Southwest Indian Ridge - SWIR) में PMS के लिए, जो 10,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को कवर करता है। यह भी 15 वर्षीय है।
ये अनुबंध भारत को गहन समुद्री अन्वेषण में अग्रणी बनाते हैं, और अब नया अनुबंध भारत को PMS के लिए तीसरा अनुबंध प्रदान करता है, जो इसे दो PMS अनुबंधों वाला पहला देश बनाता है।
पॉलीमेटेलिक सल्फाइड :
- पॉलीमेटेलिक सल्फाइड हाइड्रोथर्मल वेंट्स (ज्वालामुखी स्रोतों) के पास पाए जाने वाले खनिज जमा हैं, जो मध्य-महासागरीय रिजों (mid-ocean ridges) पर स्थित होते हैं। ये चिमनी जैसे ढांचे (black smokers) बनाते हैं और तांबा (Cu), जस्ता (Zn), सोना (Au), चांदी (Ag), कोबाल्ट (Co), निकल (Ni), मैंगनीज (Mn) और दुर्लभ पृथ्वी तत्वों जैसे महत्वपूर्ण धातुओं से समृद्ध होते हैं।
- ये खनिज इलेक्ट्रिक वाहनों (EV), सौर पैनलों, बैटरी और उच्च-तकनीकी उद्योगों के लिए आवश्यक हैं।
- कार्ल्सबर्ग रिज हिंद महासागर का एक मध्य-महासागरीय रिज है, जहां उच्च तापमान वाले हाइड्रोथर्मल वेंट्स मौजूद हैं।
- 1978-79 में ब्लैक स्मोकर्स की खोज के बाद से 350 से अधिक ऐसे स्थल पहचाने गए हैं। PMS 3D जमा हैं, इसलिए इनकी खनन तकनीक नोड्यूल्स से भिन्न होगी।
अंतरराष्ट्रीय समुद्र तल प्राधिकरण (ISA)
- स्थापना: 16 नवम्बर 1994 (UNCLOS 1982 और 1994 समझौते के तहत)
- मुख्यालय: किंग्स्टन, जमैका
- सदस्य: 169 (168 देश + EU), अमेरिका सदस्य नहीं
अधिदेश
- उच्च सागर क्षेत्र में खनिज संसाधनों का अन्वेषण व दोहन विनियमन
- पर्यावरण संरक्षण सुनिश्चित करना
उच्च सागर (High Seas)
- विश्व के 54% महासागर क्षेत्र को कवर करता है
- EEZ, प्रादेशिक समुद्र या द्वीपसमूह से बाहर का क्षेत्र
- अन्वेषण हेतु ISA से अनुमति अनिवार्य
- अब तक 19 देशों के पास अन्वेषण अधिकार