18 August, 2025
वार्षिक भूजल गुणवत्ता रिपोर्ट
Wed 13 Aug, 2025
CGWB) द्वारा जारी 2024 वार्षिक भूजल गुणवत्ता रिपोर्ट ने भारत में व्यापक भूजल प्रदूषण की गंभीर समस्या को उजागर किया है। चूंकि 60 करोड़ से अधिक भारतीय प्रतिदिन पीने, सिंचाई और औद्योगिक उपयोग के लिए भूजल पर निर्भर हैं, यह समस्या अब सिर्फ पर्यावरणीय मुद्दा नहीं बल्कि गंभीर जन स्वास्थ्य संकट बन चुकी है। रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि नीतिगत सुधार, कड़े प्रवर्तन और समन्वित प्रबंधन की तत्काल आवश्यकता है।
भारत में भूजल प्रदूषण के प्रमुख कारण
1. औद्योगिक प्रदूषण
- बिना उपचार के भारी धातुओं (सीसा, कैडमियम, क्रोमियम, पारा) और विषैले रसायनों का निर्वहन।
- कानपुर (उत्तर प्रदेश) और वापी (गुजरात) जैसे औद्योगिक क्षेत्र “डेथ ज़ोन” बन चुके हैं।
- इन प्रदूषकों से गुर्दा विफलता, कैंसर और तंत्रिका संबंधी रोग बढ़ रहे हैं।
2. कृषि पद्धतियाँ
- अत्यधिक नाइट्रोजनयुक्त उर्वरकों से नाइट्रेट प्रदूषण होता है, जिससे ब्लू बेबी सिंड्रोम जैसी बीमारियाँ होती हैं।
- फॉस्फेट उर्वरकों से भूजल में यूरेनियम प्रदूषण बढ़ रहा है, खासकर पंजाब में।
3. घरेलू सीवेज और रोगजनक प्रदूषण
- सेप्टिक टैंकों और सीवेज लाइनों से रिसाव के कारण रोगाणु भूजल में प्रवेश करते हैं।
- खराब सीवेज उपचार संयंत्रों से हैजा, टाइफाइड और हेपेटाइटिस के प्रकोप।
4. प्राकृतिक (भू-जनित) प्रदूषक
- भूगर्भीय संरचनाओं में प्राकृतिक रूप से फ्लोराइड, आर्सेनिक और यूरेनियम पाए जाते हैं।
- उच्च जोखिम वाले राज्य – राजस्थान, बिहार, पंजाब, पश्चिम बंगाल।
- अत्यधिक दोहन से जलस्तर गिरने के कारण प्रदूषकों की सांद्रता बढ़ती है।
5. अत्यधिक दोहन और लवणता प्रवेश
- असंतुलित पंपिंग से न केवल जलभंडार घटते हैं, बल्कि तटीय क्षेत्रों में खारे पानी का प्रवेश भी होता है।
नीतिगत और संस्थागत चुनौतियाँ
- कमज़ोर कानूनी ढाँचा
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- अधिनियम, 1974 मुख्य रूप से सतही जल पर केंद्रित है, भूजल को नज़रअंदाज़ करता है।
- प्रवर्तन कमजोर होने से प्रदूषक कानून के छिद्रों का लाभ उठाते हैं।
- CGWB की सीमित शक्ति
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- सीजीडब्ल्यूबी सलाहकार संस्था है, प्रवर्तन का वैधानिक अधिकार नहीं।
- संसाधन और क्षमता की कमी
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- राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCB) धन, मानव संसाधन और आधुनिक तकनीक की कमी से जूझ रहे हैं।
- विखंडित शासन प्रणाली
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- CGWB, CPCB, SPCB, और जल शक्ति मंत्रालय अलग-अलग काम करते हैं, समन्वय की कमी है।
- कम पारदर्शिता
- निगरानी डेटा कम अंतराल पर और सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं कराया जाता।
- समुदाय की कम भागीदारी
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- पंचायतों और स्थानीय समितियों को भूजल गुणवत्ता निगरानी में शामिल नहीं किया जाता।
भारत पर प्रभाव
- जन स्वास्थ्य संकट – भारी धातु, नाइट्रेट, आर्सेनिक और रोगजनकों के संपर्क से गंभीर गुर्दा रोग, कैंसर, फ्लोरोसिस और जलजनित रोग बढ़ रहे हैं।
- आर्थिक नुकसान – स्वास्थ्य उपचार, कृषि उत्पादकता में कमी और औद्योगिक उपकरणों की क्षति से हजारों करोड़ का वार्षिक नुकसान।
- कृषि खतरा – दूषित पानी से फसल उत्पादन और खाद्य सुरक्षा प्रभावित।
आगे की राह
1. कानूनी सुधार
- जल अधिनियम 1974 में भूजल प्रदूषण नियंत्रण के प्रावधान जोड़ना।
- CGWB को प्रवर्तन अधिकार देना।
2. संयुक्त एजेंसी समन्वय
- राष्ट्रीय भूजल गुणवत्ता परिषद का गठन।
3. उन्नत निगरानी प्रणाली
- उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में रीयल-टाइम सेंसर लगाना।
4. औद्योगिक जवाबदेही
- जीरो-लिक्विड डिस्चार्ज तकनीक अनिवार्य करना।
5. कृषि सुधार
- जैविक खेती और संतुलित उर्वरक उपयोग को बढ़ावा देना।
6. जन-जागरूकता और सामुदायिक भागीदारी
- ग्रामीण क्षेत्रों में जल परीक्षण तकनीक और स्थानीय निगरानी को बढ़ावा देना।
7. उपचार संयंत्रों में निवेश
- आधुनिक सीवेज और अपशिष्ट जल उपचार अवसंरचना विकसित करना।