04 August, 2025
राष्ट्रीय सहकारी नीति 2025 का शुभारंभ
Fri 25 Jul, 2025
संदर्भ :
- केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने नई दिल्ली में अटल अक्षय ऊर्जा भवन में 24 जुलाई 2025 को राष्ट्रीय सहकारी नीति 2025 का शुभारंभ किया।
मुख्य बिन्दु :
- मुख्य उद्देश्य : भारत के हर गाँव में कम से कम एक पेशेवर, वित्तीय रूप से स्वतंत्र और पारदर्शी सहकारी संगठन स्थापित करना
नीति का लक्ष्य और विजन :
पहलु | विवरण |
विजन | "सहकारिता के माध्यम से समृद्ध भारत का निर्माण" |
मुख्य लक्ष्य | 2047 तक विकसित भारत बनाने में सहकारिता क्षेत्र की निर्णायक भागीदारी |
मिशन | तकनीक-सक्षम, पेशेवर, उत्तरदायी और आर्थिक रूप से मजबूत सहकारी इकाइयों को बढ़ावा देना |
प्रमुख लक्ष्य:
उद्देश्य | लक्ष्य |
GDP में योगदान | 2034 तक तीन गुना वृद्धि |
सहकारी सदस्य | 50 करोड़ सक्रिय सदस्य |
नई समितियाँ | 30% की वृद्धि, हर गाँव में कम से कम 1 सहकारी इकाई |
रोजगार | युवाओं को सहकारी ढांचे में करियर के अवसर |
मॉडल गाँव | हर तहसील में 5 मॉडल सहकारी गाँव |
फोकस क्षेत्र :
- गांव और कृषि आधारित सहकारिता
- महिला, आदिवासी और दलित सहभागिता
- टैक्सी, टूरिज़्म, बीमा और ग्रीन एनर्जी जैसे नए क्षेत्र
- PACS के बहु-कार्यात्मक मॉडल (जैसे – ईंधन, फार्मेसी, LPG वितरण)
- ग्लोबल मार्केटिंग और एक्सपोर्ट कोऑपरेटिव्स
नीति की विशेषताएँ:
क्षेत्र | विवरण |
नींव का सशक्तिकरण | संस्थाओं की आंतरिक क्षमता और स्वायत्तता को बढ़ाना |
डिजिटल परिवर्तन | PACS का कम्प्यूटरीकरण, पारदर्शी MIS सिस्टम |
मानव संसाधन विकास | "त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय" की स्थापना |
निगरानी प्रणाली | क्लस्टर आधारित निगरानी और परफॉर्मेंस ऑडिट |
सदस्य-केंद्रित मॉडल | नीति का केंद्र है – सदस्य का कल्याण और आत्मसम्मान |
संस्थागत ढाँचा और सुधार :
- 83 हस्तक्षेप बिंदु (Intervention Points): जिनमें से 58 पर कार्य पूर्ण हो चुका है
- कानूनों में सुधार: प्रत्येक 10 वर्ष में अद्यतन करने की व्यवस्था
- मॉडल बायलॉज़: सभी राज्यों द्वारा अपनाए गए
वित्तीय और वैश्विक दृष्टिकोण:
- शेड्यूल्ड कोऑपरेटिव बैंकों को व्यवसायिक बैंकों के समकक्ष दर्जा
- एक्सपोर्ट कोऑपरेटिव्स की स्थापना → वैश्विक बाज़ार में भारतीय सहकारी उत्पादों की पहुँच
- PACS को ईंधन, फार्मेसी, सौर ऊर्जा, बीज वितरण आदि में सक्रिय बनाना
भविष्य की योजनाएं :
- ‘सहकार टैक्सी’ योजना (सीधा लाभ ड्राइवर को)
- श्वेत क्रांति 2.0 → डेयरी क्षेत्र में महिला भागीदारी बढ़ाना
- प्रत्येक पंचायत में कम से कम 1 PACS
- सभी समितियों की कम्प्यूटरीकरण प्रक्रिया पूरी
सामाजिक और समावेशी विकास :
लक्षित समूह | योगदान |
महिलाएं | श्वेत क्रांति, रोजगार, PACS संचालन |
युवा | सहकारिता में करियर, स्टार्टअप मॉडल |
ग्रामीण | आर्थिक सशक्तिकरण और स्थानीय रोजगार |
दलित/आदिवासी | प्राथमिकता से भागीदारी सुनिश्चित |
सहकारी संस्था
- एक ऐसी स्वैच्छिक संस्था होती है जहाँ लोग मिलकर सामूहिक रूप से आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एकत्र होते हैं, और लोकतांत्रिक तरीके से संस्था का संचालन करते हैं।
भारत में सहकारी आंदोलन :
- भारत में सहकारी आंदोलन (Cooperative Movement) एक सामाजिक-आर्थिक आंदोलन है जिसका उद्देश्य किसानों, मजदूरों, कारीगरों, दुग्ध उत्पादकों, आदि जैसे कमजोर वर्गों को एक साथ लाकर उनके आर्थिक हितों की रक्षा करना है।
- यह आंदोलन "सहकार से समृद्धि" (Prosperity through Cooperation) के सिद्धांत पर आधारित है।
वर्ष / अवधि | महत्वपूर्ण घटना / चरण | विवरण |
1904 | सहकारी ऋण समिति अधिनियम | भारत में पहला सहकारी कानून, सहकारी समितियों को कानूनी मान्यता |
1912 | सहकारी समिति अधिनियम | विपणन, हथकरघा, कारीगर समितियों को शामिल किया गया |
1914 | मैक्लेगन समिति की रिपोर्ट | त्रिस्तरीय सहकारी बैंकिंग प्रणाली का प्रस्ताव |
1919 | भारत सरकार अधिनियम (मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार) | सहकारिता को प्रांतीय विषय बनाया और राज्यों को कानून बनाने का अधिकार दिया |
1925 | बॉम्बे सहकारी समिति अधिनियम | पहला प्रांतीय सहकारी कानून |
1945 | सहकारी आयोजना समिति का गठन | आर्थिक योजनाओं के लिए सहकारिता की भूमिका और प्रबंधन की समीक्षा |
1963 | राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (NCDC) की स्थापना | सहकारी समितियों के विकास हेतु वित्तीय सहायता |
1981 | NABARD की स्थापना | ग्रामीण विकास और सहकारी ऋण प्रणाली का समर्थन |
2002 | राष्ट्रीय सहकारी नीति | सहकारी क्षेत्र के लिए नीति का फ्रेमवर्क |
2021 | सहकारिता मंत्रालय का गठन | सहकारी समितियों के विनियमन और विकास के लिए समर्पित मंत्रालय |
सहकारी संस्थाओं के प्रकार:
- इसके अतिरिक्त, सहकारी समितियाँ कई स्तरों पर होती हैं:
- प्राथमिक सहकारी समितियाँ: स्थानीय स्तर पर काम करती हैं
- केंद्रीय सहकारी समितियाँ: जिला या क्षेत्रीय स्तर पर
- राज्य सहकारी समितियाँ: राज्य स्तर पर
- बहु-राज्य सहकारी समितियाँ: कई राज्यों में काम करने वाली समितियाँ
प्रमुख संगठन :
संगठन | मुख्य कार्य |
NAFED | कृषि विपणन एवं निर्यात |
IFFCO | उर्वरक उत्पादन |
KRIBHCO | उर्वरक उत्पादन |
AMUL (GCMMF) | दुग्ध उत्पाद |
NCUI | प्रशिक्षण एवं प्रचार |
NCDC | वित्तीय सहायता प्रदान करना |
संविधान में सहकारिता :
- संविधान में सहकारिता एक महत्त्वपूर्ण और संरचनात्मक रूप से सुदृढ़ संस्था के रूप में मान्यता प्राप्त है।
- सहकारिता को संविधान में 97वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2011 के माध्यम से एक संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया।
- इससे पहले सहकारी समितियां केवल विधिक संस्थाएं थीं, परंतु अब उन्हें संविधान के संरक्षण प्राप्त हैं।
97वां संविधान संशोधन अधिनियम, 2011 :
यह संशोधन 12 अक्टूबर 2011 से प्रभावी हुआ। इस अधिनियम के माध्यम से तीन मुख्य परिवर्तन किए गए:
संशोधित भाग | विवरण |
भाग III (मौलिक अधिकार) | अनुच्छेद 19(1)(c) में "सहकारी समितियों के गठन करने का अधिकार" जोड़ा गया। अब यह मौलिक अधिकार है। |
भाग IV (राज्य नीति के निदेशक सिद्धांत) | अनुच्छेद 43-B जोड़ा गया - "राज्य सहकारी समितियों के स्वैच्छिक गठन, लोकतांत्रिक नियंत्रण और व्यावसायिक प्रबंधन को बढ़ावा देगा।" |
भाग IX-B (नया जोड़ा गया) | अनुच्छेद 243-ZH से 243-ZT तक सहकारी समितियों के प्रबंधन, चुनाव, कार्यकाल, लेखा परीक्षा आदि के बारे में स्पष्ट प्रावधान जोड़े गए। |
भाग IX-B की मुख्य विशेषताएँ (अनुच्छेद 243ZH से 243ZT):
- लोकतांत्रिक निर्वाचन: प्रत्येक 5 वर्षों में समय पर स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराना अनिवार्य
- सदस्य संख्या: बोर्ड की अधिकतम सदस्य संख्या तय — 21
- आरक्षण: अनुसूचित जातियों/जनजातियों और महिलाओं के लिए बोर्ड में आरक्षण
- कार्यकाल: सहकारी समितियों के निर्वाचित बोर्ड का कार्यकाल अधिकतम 5 वर्ष
- सुपरसेशन: बोर्ड के निलंबन की स्पष्ट परिस्थितियाँ — सामान्यतः 6 महीने से ज़्यादा नहीं
- लेखा परीक्षा: पंजीकृत ऑडिटरों द्वारा अनिवार्य वार्षिक ऑडिट
- सूदृढ़ संरचना: समितियों के स्वायत्तता, पारदर्शिता और जवाबदेही को संविधान से बल मिला
सहकारिता - राज्य का विषय :
- संविधान की सातवीं अनुसूची के 'राज्य सूची' (State List) में सहकारिता शामिल है। अत: सहकारी समितियों से संबंधित कानून बनाना राज्य विधानमंडलों का अधिकार है।
- जबकि बहु-राज्य सहकारी समितियां (Multi-State Cooperative Societies) केंद्र के अधीन आती हैं, जिन पर संसद कानून बना सकती है।