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समलैंगिक विवाह पर कोर्ट का निर्णय -

Thu 19 Oct, 2023

सन्दर्भ - 

  • सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार करते हुए यह कहा कि यह संसद का अधिकार क्षेत्र है। 
  • इसके अलावा 3:2 के बहुमत से पीठ ने बच्चा गोद लेने के उनके अधिकार को स्वीकार नहीं किया है ।

मुख्य बिंदु - 

  • हालांकि, कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि समलैंगिक व्यक्तियों को अपना साथी चुनने का अधिकार है।
  • इसके साथ ही कोर्ट ने केंद्र को यह सुनिश्चित करने को कहा कि जोड़ों के साथ किसी भी तरह का भेदभाव नहीं किया जाए।
  • इसके लिए अदालत ने केंद्र से मुद्दे से संबंधित मसलों पर व्यापक रूप से विचार के लिए एक समिति बनाने का सुझाव दिया है, जिसे मान लिया गया है।

 समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर 5 जजों के मध्य सहमति के बिंदु - 

  •  स्पेशल मैरिज एक्ट असंवैधानिक नहीं है,कोर्ट इसे रद्द नहीं कर सकती ।
  • विषमलैंगिक संबंधों में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को मौजूदा कानूनों या व्यक्तिगत कानूनों के तहत शादी करने का अधिकार है।
  • विवाह करना कोई मौलिक अधिकार नहीं, संविधान विवाह करने के अधिकार को मान्यता नहीं देता है।
  • समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देना कोर्ट के अधिकार से परे है।
  • बेंच में शामिल सभी जजों ने समलैंगिक जोड़ों के अधिकारों पर विचार के लिए कमेटी का गठन करने का निर्देश दिया।
  • सरकार यह सुनिश्चित करे कि समलैंगिक जोड़ों द्वारा चुनी गई पसंद में हस्तक्षेप न किया जाए और एलजीबीटीक्यू+ समुदाय को अपने अधिकारों का इस्तेमाल करने में सक्षम बनाया जाए।

 निर्णय का प्रभाव - 

  • इस फैसले से विशेष विवाह अधिनियम-1954 बरकरार रह गया है, जिसमें केवल एक ‘पुरुष’ और एक ‘महिला’ के बीच विवाह की ही अनुमति है। 
  • एक तरफ देश का बड़ा तबका इसे भारतीय संस्कृति और परिवारवाद की मौलिक अवधारणा पर न्यायालय की मुहर मान रहा है। 
  • वहीं दूसरी तरफ संविधान पीठ का यह निर्णय समलैंगिक समुदाय के पक्ष में न होने से इस समुदाय को निराशा हाथ लगी है।
  • जब सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 377 को रद्द करके समलैंगिकता को अपराधमुक्त कर दिया था  एवं  समलैंगिक व्यक्ति की यौन स्वायत्तता को निजता के उनके मौलिक अधिकार के एक पहलू के रूप में मान्यता दी थी तब इन समलैंगिक जोड़ों में उम्मीद जगी थी।

 परीक्षा उपयोगी महत्वपूर्ण तथ्य -

IPC की धारा 377 -

  • कोई भी व्यक्ति प्रकृति के नियमों के विरुद्ध जाकर किसी पुरूष, स्त्री या पशु से आप्रकृतिक शारिरिक संबंध बनाता हैं तो इसे अपराध माना जाएगा। 
  • इस मामले में 10 वर्ष की कैद और आर्थिक दंड का प्रवधान था।
  • 5 न्यायाधीशों की पीठ ने 6 सितंबर, 2018 को फैसला सुनाया था कि सहमति से अप्राकृतिक यौन संबंध को अपराध मानने वाली धारा 377 तर्कहीन, अक्षम्य और स्पष्ट रूप से मनमाना है।
  • समानता के अधिकार का उल्लंघन होने के कारण इसे आंशिक रूप से रद्द कर दिया गया है।
  • अब केवल असहमति से बने समलैंगिक सम्बन्ध अपराध की श्रेणी में आएंगे । 

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